Vikram Sarabhai Jayanti

विक्रम साराभाई जयंती: जानते  है भारत के अंतरिक्ष कार्यक्रम में उनका प्रमुख योगदान

भारतीय अंतरिक्ष कार्यक्रम के जनक विक्रम साराभाई,  जिन्होंने कि देश में विज्ञान की उन्नति, विशेष रूप से अंतरिक्ष अन्वेषण के क्षेत्र में अपने महत्वपूर्ण योगदान के लिए जाना जाता हैं। आज उनकी 53वी जयंती पर हम उनके बारे में कुछ रोचक तथ्य और अंतरिक्ष क्षेत्र में उनके प्रमुख योगदानों पर नज़र डालते हैं।

विक्रम साराभाई के कुछ मुख्य तथ्य

विक्रम साराभाई का जन्म 12 अगस्त, 1919 को अहमदाबाद में साराभाई प्रगतिशील उद्योगपतियों के एक समृद्ध परिवार में हुआ था। वह अंबालाल और सरला देवी की आठ संतानों में से एक थे। उन्होंने अपनी प्रारंभिक शिक्षा ‘रिट्रीट’ नामक एक निजी स्कूल से की, जिसे कि उनके माता-पिता ही चलाया करते थे। मैट्रिकुलेशन करने के बाद, साराभाई अपनी कॉलेज की शिक्षा के लिए कैम्ब्रिज चले गए। उन्होंने 1940 में सेंट जॉन्स कॉलेज से प्राकृतिक विज्ञान में ट्राइपोस लिया। जब द्वितीय विश्व युद्ध शुरू हुआ, तो उन्होंने भारत वापिस लौटने का फैसला किया और बेंगलुरु स्थित भारतीय विज्ञान संस्थान में सीवी रमन के तहत एक शोध विद्वान के रूप में शामिल हो गए। सौर भौतिकी और ब्रह्मांडीय किरणों में साराभाई की गहरी रुचि के परिणामस्वरूप देश के विभिन्न हिस्सों में कई अवलोकन स्टेशन स्थापित किए गए। साल 1945 में वे कैम्ब्रिज वापस चले गए और फिर 1947 में अपनी पीएचडी पूरी की। इसके तुरंत बाद, उन्होंने नवंबर 1947 में अहमदाबाद में भौतिक अनुसंधान प्रयोगशाला (पीआरएल) की स्थापना में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई थी। यह प्रयोगशाला उनके माता-पिता द्वारा स्थापित अहमदाबाद एजुकेशन सोसाइटी के एमजी साइंस इंस्टीट्यूट के कुछ कमरों में ही स्थापित की गई थी। प्रयोगशाला को वैज्ञानिक और औद्योगिक अनुसंधान परिषद (सीएसआईआर) के साथ-साथ परमाणु ऊर्जा विभाग से भी आवश्यक समर्थन मिला। साराभाई ने 1966 से 1971 के बीच पीआरएल में भी  काम किया, जबकि उनका प्रभाव कई संगठनों तक फैला हुआ था। उसके बाद उन्होंने 1962 में भारतीय राष्ट्रीय अंतरिक्ष अनुसंधान समिति (INCOSPAR) की स्थापना की, जिसके बाद भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (ISRO) की स्थापना हुई, जो अंतरिक्ष की खोज करने की भारत की इच्छा में एक महत्वपूर्ण मोड़ था।

विक्रम साराभाई के प्रमुख योगदान

भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (इसरो) की स्थापना साराभाई के देश के लिए प्रमुख योगदानों में से एक मानी जाती है। रूस द्वारा स्पुतनिक के प्रक्षेपण के बाद, उन्होंने सफलतापूर्वक केंद्र सरकार को भारत जैसे विकासशील देश के लिए अंतरिक्ष कार्यक्रम के महत्व के बारे में आश्वस्त किया। भारत के परमाणु विज्ञान कार्यक्रम के जनक माने जाने वाले डॉ होमी जहांगीर भाभा ने अरब सागर के तट पर तिरुवनंतपुरम के पास थुंबा में देश का पहला रॉकेट लॉन्चिंग स्टेशन स्थापित करने में साराभाई का समर्थन किया था । इसरो की वेबसाइट के अनुसार, यहाँ से उद्घाटन उड़ान 21 नवंबर, 1963 को सोडियम वाष्प पेलोड के साथ शुरू की गई थी। विज्ञान शिक्षा में अपनी रुचि के कारण, साराभाई ने 1966 में अहमदाबाद में एक सामुदायिक विज्ञान केंद्र की स्थापना की। यह स्थान आज विक्रम साराभाई सामुदायिक विज्ञान केंद्र के नाम से जाना जाता है। उनके योगदान के लिए, उन्हें 1962 में शांति स्वरूप भटनागर पदक मिला। केंद्र ने उन्हें 1966 में पद्म भूषण और 1972 में पद्म विभूषण (मरणोपरांत) से सम्मानित किया। विक्रम साराभाई ने 31 दिसंबर, 1971 को अंतिम सांस ली।

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