एक ऐतिहासिक फैसले में, सुप्रीम कोर्ट ने आज यह घोषणा की है कि पति और पत्नी के भरण-पोषण के अधिकार से संबंधित धारा 125 सभी विवाहित महिलाओं पर लागू होती है, चाहे उनका धर्म कुछ भी हो। निर्णय में यह भी पुष्टि की गई है कि, मुस्लिम महिलाएं भी तलाक के बाद भरण-पोषण मांगने के लिए इस प्रावधान के तहत आह्वान कर सकती हैं।
कैसे उठा यह मामला?
यह मामला तब उठा जब एक मुस्लिम व्यक्ति ने तेलंगाना उच्च न्यायालय के आदेश को चुनौती दी, जिसमें उसे अपनी पूर्व पत्नी को अंतरिम भरण-पोषण के रूप में 10,000 रुपये देने का निर्देश दिया गया था। याचिकाकर्ता के वकील ने तर्क दिया कि मुस्लिम महिला (तलाक पर अधिकारों का संरक्षण) अधिनियम, 1986, एक तलाकशुदा मुस्लिम महिला को धारा 125 सीआरपीसी के तहत लाभ का दावा करने से रोकता है। हालांकि, सुप्रीम कोर्ट की पीठ ने इस तर्क को खारिज कर दिया और सामान्य कानून के तहत मुस्लिम महिला के भरण-पोषण मांगने के अधिकार को बरकरार रखा न्यायालय ने कहा कि यह अधिकार धार्मिक सीमाओं से परे है, जो सभी विवाहित महिलाओं के लिए लैंगिक समानता और वित्तीय सुरक्षा के सिद्धांत को मजबूत करता है।
न्यायमूर्ति नागरत्ना ने क्या फैसला सुनाया?
न्यायमूर्ति नागरत्ना ने फैसला सुनाते हुए कहा, “हम इस प्रमुख निष्कर्ष के साथ आपराधिक अपील को खारिज कर रहे हैं कि धारा 125 सीआरपीसी सभी महिलाओं पर लागू होगी, न कि केवल विवाहित महिलाओं पर।” सर्वोच्च न्यायालय ने इस बात पर भी प्रकाश डाला कि भारतीय पुरुषों के लिए समय आ गया है कि वे परिवार के लिए गृहिणियों द्वारा की जाने वाली अपरिहार्य भूमिका और त्याग को पहचानें। पीठ ने पतियों द्वारा अपनी पत्नियों को वित्तीय सहायता प्रदान करने की आवश्यकता पर प्रकाश डाला, जिसमें घर के भीतर महिलाओं के लिए आर्थिक स्थिरता सुनिश्चित करने के लिए संयुक्त बैंक खाते रखने और एटीएम तक पहुँच साझा करने जैसे व्यावहारिक उपाय सुझाए गए है।